What is Siddhi ? What is Sidh Yogi and Brahmyogi? सिद्धि प्राप्त करना व ईश्वर के बीच kya सम्बन्ध। Siddhi kyo chahiye, राजयोगी या हठयोगी या दोनों, अघोरी नागा जो कुंभ में आते है क्या वही हठयोगी और राजयोगी? सब प्रश्नों के उत्तर।



    ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 
                     
       
                           (आदर्श वाक्य)

"अध्यात्म, आत्मा का अध्ययन व आत्मा को जानने का प्राकृतिक विज्ञान। 
जब अध्यात्म से लोंगे ज्ञान (आत्मज्ञान), तब होगी ईश्वर की पहचान। 
ले आत्मा आनन्द अध्यात्म से फिर कर ले मिलन परमानन्द से। 
आत्मा की भाषा मौन, आत्मा का व्यायाम योग।
 जब हो प्राणायाम, आत्मा करे आराम। 
जब लगे ध्यान,आत्मा करे परमात्मा से बात।
जब लगे समाधि, तब हो आत्मा व परमात्मा की शादी।"

 


     सिद्धि मतलब पूर्णता अर्थात किसी भी कार्य में पूर्ण योग्यता और निपुणता हासिल कर लेना ही सिद्धि है। वैज्ञानिक भी विज्ञान से प्राप्त योग्यता को हासिल कर अपने विभिन्न बड़े- बड़े  प्रयोगों को सिद्ध करते है। तभी तो मानव जीव सुख की अनुभूति करता है। लेकिन, ये भौतिक, क्षणिक सुख है। ये समय के साथ सुख तो देते है लेकिन जीवन भर दुख भी देते है। व्यक्ति को आलस्य व प्राकृतिक जीवन से दूर कर जीव को रोगी, भोगी, विषय व वासनाओं से भर देते है।

     वास्तविक सुख केवल और केवल ऐसे अध्यात्म से है, जो जीव दृढ़ व अडिग होकर अपने श्रेष्ठ सिद्धांतों पर चलकर पुण्य कर्म व सत्कर्म करता रहता है, और जिस दिन उसके पुण्य कर्मो का फल उदय होता है। तब ईश्वर की कृपा से वह वास्तविक अध्यात्म की और उन्मुख होता है, और आध्यात्मिक विज्ञान के अध्ययन से आत्मा का अध्ययन कर आत्मा का ज्ञान आत्मज्ञान पाता है। आत्मज्ञान पाकर फिर पंच तत्वों से परे छठे तत्व ब्रह्मतत्व में मिल जाता है। 

   राजयोग अर्थात अष्टांग योग [ कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्ति योग व हठयोग (योग व विभिन्न मुद्राओं का मिश्रण)]। राजयोग (अष्टांग योग) के अंदर विभिन्न योगों और मुद्राओं का मिश्रण है, इसलिए इसे योगों का राजा राजयोग कहते है। अष्टांग योग! ऐसी दिव्य चिकित्सा है, जो मानसिक शारीरिक व आध्यात्मिक रोगों को दूर कर देता है। एक बार इस मार्ग में जाकर तो देखो। अष्टांग योग सिद्ध है ! यानी ईश्वर में योगी, योगी में ईश्वर यही अष्टांग योग है। योगम योगी भोजते अर्थात योगी का भोजन ही योग है। जैसी ही आप इस रस्ते पर जाओगे प्राकृतिक ऊर्जाएं आपको प्रत्यक्ष रूप से ऊर्जा देने लगती है, कुछ खाने पीने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

   सांसारिक व गृहस्थ भी इस मार्ग को अपना सकते है । इसी राजयोग के दैनिक अभ्यास से सिद्ध योगी या राजयोगी(ब्रह्मयोगी) या दोनों बन जाते है। सिद्ध योगी और राजयोगी(ब्रह्मयोगी) में अंतर है। सिद्ध योगी प्रकृति से सिद्धि तो प्राप्त कर लेता है, लेकिन सिद्धियों मात्र से ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता। सिद्धि तो केवल हठ योग से भी प्राप्त की जा सकती है। हठ योग का मतलब सिद्धि प्राप्त करने वाला योगी; प्रकृति में ज्यादा रम जाता है, कभी भस्म लगाकर कभी मिट्टी कभी प्रकाश से आदि प्रकृति के अलंकारों से अपने शरीर को आभूषित करता है। कभी भूखा, कभी प्यासा रहता है। ओर हट करते हुए कठिन से कठिन योग सिद्ध करता है, व प्रकृति की शक्तियों के बारे में जानकर पानी पर चलना, हवा में उड़ना, दूसरों के मन की बात जानना आदि कर लेता है। 

      सिद्धयोगी कई बार इनका प्रदर्शन भी करने लगता है और लोग उसको देखकर आश्चर्यचकित होते जाते है और उसका गुणगान करने लगते है। और वह उसी में खुश होकर आनंदित होता रहता है, वैसे सिद्धि प्राप्त करना भी कोई आसान कार्य नहीं है। राजयोगी (ब्रह्मयोगी) बनने के लिए राजयोग को सिद्ध करना पड़ता है। राजयोगी (ब्रह्मयोगी) किसी भी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करता, वह योगियों का योगी ब्रह्मयोगी हो जाता है, मौन उसका आभूषण हो जाता है, वह ईश्वरलीन हो जाता है, ओर मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है। 


   राजयोगी(ब्रह्मयोगी) सिद्धियों के पीछे नहीं भागता, वह योग करते करते योगेश्वर के पीछे भागता है व उसी में रमकर ईश्वरीय हो जाता है।  क्योंकि राजयोग योग का अष्टांग मार्ग महर्षि पतंजलि महाराज द्वारा प्रतिपादित है, जो राजयोग, आयुर्वेद व व्याकरण के जन्मदाता थे। उनकी महानता के सामने सब कुछ छोटा है, क्योंकि उन्होंने, योगियों को ईश्वर से मिलाने वाला अष्टांग योग दिया, भोग कर रोगी बनने वाले रोगियों को रोग का समाधान आयुर्वेद दिया व शिक्षार्थियों को व्याकरण का ज्ञान दिया, ताकि वो शिक्षा ग्रहण करकर अपने अपने क्षेत्रों में विद्वान बन सके।

    अष्टांग योग मार्ग के 8 योग आपको क्रमबद्ध जीवन में उतारने पड़ते है; ये क्रमशः यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि है। इनको क्रमबद्ध सिद्ध करना पड़ता है। इनकी सिद्धि होने पर आप सबसे बड़े योगी बन जाते है।

      लेकिन हठयोगी अगर राजयोग में उतर जाए तो उसका ईश्वर प्राप्ति का मार्ग आसान हो जाता है, क्योंकि पहले ही हठयोगी हठयोग करते - करते अपने तन, मन व प्रकृति को योग साधना से साध लेता है, व प्रकृति के पंच तत्वों को साध लेते है, अब केवल उसको पंच तत्वों से अलग छठे तत्व ब्रह्मतत्व को साधना है, फिर वह राजयोग के माध्यम से उस ब्रह्मतत्व को साधता है, जैसे राजयोग  सिद्ध होता है, उस परमेश्वर, प्रकृति, आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है व ब्रह्मतत्व से मिलकर वह मोक्ष की प्राप्ति पाता है, जन्म मरण के बंधन से मुफ्त हो जाता है। 

   वैसे  योगसाधना में योग तो बहुत है, जैसे राजयोग, हठयोग, लययोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग इनमें भी महत्वपूर्ण दो है; हठयोग व राजयोग व सबसे महत्वपूर्ण  है राजयोग! क्योंकि इसमें लगभग सभी योगों व मुद्राओं का अंश है। राजयोग में योग व मुद्राओं की कुछ क्रियाएं आपके तन मन व  जीवन व जीवन देने वाले को साधती है। राजयोग में सब कुछ सधता है, किंतु अगर आप पहले से ही हठयोगी है, तो राजयोगी बनना आपके लिए आसान हो जाता है। आप प्रत्यक्ष रूप से भी राजयोगी बन सकते है। लेकिन कुछ योग और क्रियाएं हठयोग वाली आपको करनी पड़ती है। मतलब राजयोग सभी योगों का मिश्रण है। और ईश्वर प्राप्ति के लिए राजयोग में जाना ही पड़ता है।

     हठयोगी अर्थात सिद्धियां प्राप्त योगी जरूरी नहीं समझदार व बुद्धिमान हो, लेकिन राजयोगी में सब गुण ईश्वरीय होते है वह दिव्य होता है, वह ब्रह्मयोगी हो जाता है, तभी तो उसका ईश्वर से साक्षात्कार होता है। मनुष्य योनि का अंतिम उद्देश्य ईश्वरप्राप्ति ही है। अगर वर्तमान में आप राजयोगी के दर्शन करना चाहते हों तो देवरहा बाबा महाराज जी के बारे में जान सकते है, उनकी बातचीत की वास्तविक वीडियो यूट्यूब में उपलब्ध है और वर्तमान समय में  उनके शिष्य भी जन जन को देवरहा बाबा जी का ज्ञान देते है। ॐ देवराय दिगंबराय मंचासीनाय नमो: नमः ११

सिद्धयोगी व स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की शक्तियों के प्रदर्शन के एक अनूठी कहानी :- 

   एक बार एक हठयोगी नदी किनारे रामकृष्ण परमहंस जी से पूछता है, कि आप सीधे - सीधे ईश्वर से बाते करते है, तो मुझे इस नदी को पार करके दिखाओ। तो उन्होंने एक नाव वाले को 50 पैसे दिए और नाव के माध्यम से नदी पार कर ली । अब हठयोगी बोला मै बिना नाव के पार करके दिखाता हूं। और उसने नदी के ऊपर चलकर नदी को पार कर लिया। 

   स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने उससे पूछा आपको ये सिद्धि प्राप्त करने में कितना समय लगा तो हठयोगी खुश होकर तपाक से बोला 50 साल। तभी रामकृष्ण परमहंस जी ने उसको शिक्षा देते हुए उत्तर दिया 50 पैसे के काम के लिए तुमने 50 साल लगा दिए। अगर ईश्वर प्राप्ति के लिए 50 साल लगा देते तो अब तक मेरी तरह ईश्वरलीन हो गए होते। मैंने राजयोग के माध्यम से भवसागर को पार कर लिया है। और आप दिखावे के लिए अपना समय केवल सिद्धियां पाने में बरबाद कर रहे हो; जाओ अब राजयोग में जाओ और भक्ति और बाकी योग करो उनका ज्ञान लो बहुत कुछ आपने पहले ही साध रखा है, कठिन योग क्रियाओं से। अब जाओ बस ईश्वर को साधो बेड़ापार हो जाएगा। स्वामी जी बोले ये नदी मैं भी पार कर लेता, लेकिन सिद्धियों से नहीं, मै सिद्धि प्राप्त योगी नहीं हूं। मेरी निष्काम भक्ति ही मेरा योग है, और उसी भक्ति बल से मेरी तनिक इच्छा मात्रा से मेरे कृपालु ईश्वर, मुझे तुम्हारी  पलक झपकते ही इस नदी को पार करा देते, पर इतने छोटे काम के लिए मैं अपने प्रभु को परेशान कैसे करूं।

      वह हठयोगी सिद्धयोगी ये सुनते ही दंडवत हो गया बोला हे प्रभु! मुझे माफ कर दो। मुझसे भूल हो गई। अब में भी ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलूंगा और  फिर कभी ऐसे किसी भी कार्य पर न तो घमंड करूंगा न दिखावा। अपने मेरी बंद आंखों से अज्ञानता पर्दा हटा लिया, आप धन्य है प्रभु! आपकी जय जयकार हो। 

हरि ॐ तत् सत्
ॐ श्री परमात्मने नमः 


सिद्धि क्या है यूट्यूब वीडियो देखने के लिए यूट्यूब लिंक मुझ पर क्लिक करे। कुछ लेख से समझ जाओगे कुछ वीडियो से ।


                         


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